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...भोजपुरी शकुन्तला

भोजपुरी शकुन्तला मेरी एक ऐसी कृति है जिसके लिए मैंने अपनी पुरी क्षमता के साथ काम किया है। पाठको का स्नेह भी मुझे मिला है जिसका मैं जीवन भर आभारी रहूँगा। मेरा यह इन्टरनेट ब्लॉग उन पाठको के लिए है जो मेरी पुस्तक शकुन्तला का अध्ययन नही कर सके। भोजपुरी में लिखी गई "शकुन्तला "उनको समर्पित है। डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी

शनिवार, दिसंबर 18, 2010

...भोजपुरी शकुन्तला: शकुन्तला द्वितीय खंड (1)

...भोजपुरी शकुन्तला: शकुन्तला द्वितीय खंड (1)
प्रस्तुतकर्ता डॉ ईश्वर चन्द्र त्रिपाठी पर 23:49

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तुम भी इसी शहर में , हम भी इसी शहर में

मिलते नहीं कभी भी ,
रहते हैं एक सफ़र में /
तुम भी इसी शहर में ,
हम भी इसी शहर में //
आँखों कि क्यारियों में ,
नींदों कि बहारों में /
ख्वाबों के फूल खिलते ,
झरते हैं रात भर में //
आ वक़्त के टुकड़े से ,
हम उम्र को निचोड़ें /
कहते हैं इक समंदर ,
सोया है इस लहर में //
ये जिद थी मुकद्दर की
जिसे मान गये वरना /
तुमसे हज़ार दुनिया ,
कमतर मेरी नजर में //
तुमने मुझे गवांया ,
मैंने तुझे लुटाया /
अमृत तलाशते थे ,
दोनों कभी जहर में //
कल रात मेरे साथ ,
नया हादसा हुआ /
सौगात लेके आयी थी ,
मौत मेरे घर में //

डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी


आज के हालात में जिन्दा हू और ईमान से

शायरी करता नहीं ,
फिर भी बड़ा शायर हू मै/
हूँ खडा गुमराह लेकिन,
वक़्त का रहबर हू मैं //
तेरे ही नक्शे कदम पे,
चलके आ पंहुचा यहाँ /
आज दुनिया के लिए ,
एक मील का पत्थर हू मै //
खंडहर में खो गयी,
मीनार की मदहोशियाँ /
आंसुओं में भीगकर,
गिर जाने वाला घर हू मैं //
डस्टबिन में अंधों ने,
मुझको दबाकर रख दिया /
कागजों के बंडलों में,
सोने के अक्षर हू मैं //
आज के हालात में ,
जिन्दा हू और ईमान से /
करलो अंदाजा इसी से,
कितना ताकतवर हू मै //
काम करने से लगी,
परहेज करने धड़कनें /
मै मदरसा बन गया,
या हकीमी दफ्तर हू मै //
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी

असली चेहरा -नकली चेहरा देख लिया

कफ़न बंधा मैंने एक सेहरा देख लिया ,
असली चेहरा -नकली चेहरा देख लिया/
घर की दीवारों को जबसे कान हुए ,
इंसानों को गूंगा -बहरा देख लिया /
मिटटी के कारिंदे सोने की खंजर ,
आँखों के पहरों पर पहरा देख लिया /
घूँघट में ज्वालामुखियाँ लहरों में लपटें ,
दिल को सागर से भी गहरा देख लिया /
तुम भी मेरे साथ चढोगे शूली पर ,
मैंने भी क्या ख्वाब सुनहरा देख लिया /
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी

अपनी बर्बादी का मंजर देखना अच्छा नहीं

अपनी तन्हाई में भी ,
रहता कभी तनहा नहीं /
लोग जैसा सोचते हैं ,
मै कभी वैसा नहीं //
एक तुम्ही तो थे हमारी,
जिंदगी में और क्या ?
छोड़कर जाने से पहले,
क्या इसे सोचा नहीं ?
धुप्प अँधेरे में दम निकलेगा,
लो चलो अच्छा हुआ /
अपनी बर्बादी का मंजर,
देखना अच्छा नहीं //
हर तरफ कांटे ही काटे,
उग गए दीवार पर /
सहने गुलशन में कोई भी,
फूल का पौधा नहीं //
तुम हमारा मौत से,
परिचय करा देते अगर /
कल से इस दुनिया में,
कोई दूसरा मरता नहीं //
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी

आग के दरिया में जिस आदमी का घर होगा

आग के दरिया में,
जिस आदमी का घर होगा ,
चीर के देखो ,
कलेजे में समंदर होगा /
जिनकी पलकों में कोई ,
दर्द जागता ही रहा ,
उन निगांहों को कहाँ ,
ख्वाब मयस्सर होगा /
किसी तूफां में भटकते हो,
जो पत्ते कि तरह ,
रोक कर देख लो ,
वह मेरा मुकद्दर होगा /
छोड़ो विषदंत गिनो ,
मत मेरे संपोलों के ,
रहनुमा होगा तो ,
सबसे बड़ा विषधर होगा /
रहेंगें भेड़- बकरियों,
के शहंशाह अगर ,
हादसा होना है ,
होगा यहाँ , अक्सर होगा /
कोई कौरव या पांडव हो,
द्रौपदी को क्या ,
लुटेरे सब हैं जियादा ,
कोई कमतर होगा /
डॉ. ईश्वरचंद्र त्रिपाठी

उड़ जायेगी पतंग कोई डोर तो मिले

इस घूमती हवा का कोई कोर तो मिले ,
उड़ जायेगी पतंग कोई डोर तो मिले /
पिंजरे या घोसले में कोई फर्क है नहीं ,
मजबूर परिंदा हू कोई ठौर तो मिले /
इस रात की लम्बाई मेरी उम्र से बड़ी ,
कर लेता चहलकदमी कोई भोर तो मिले /
हम उंगलिया आवाज की पकड़ेचले आते ,
इस शहर-खामोंशा में कोई शोर तो मिले /
मुर्दे भी सेकने लगे हैं,रोटियां अच्छी ,
बस कौमी सियासत का कोई दौर तो मिले/
मै मौत की दीवार फांद सकता हू लेकिन,
इस आसमा का कोई ओर-छोर तो मिले /
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी

मेरी नजरों ने मुझे चेहरा बदलने न दिया //

सफ़र सुहाना था , पर मुझको निकलने न दिया/
लगा के आग किसी ने मुझे जलने न दिया //
अंधे सूरज की तरह रोज सुलगता ही रहा /
कुवांरी शाम के एहसास में ढलने न दिया //
तेरी हंसी मुझे बचपन में डुबो देती है /
जिसकी फिसलन ने मेरे पांव संभलने न दिया //
किसी दीवार में शीशे की तरह टंगवा कर /
मेरी नजरों ने मुझे चेहरा बदलने न दिया //
बर्फ हूँ बर्फ , पिघलना तो मेरी फितरत है /
मेरी तासीर ने क्यों आग उगलने न दिया //
रूह के वास्ते भी कब्र बना दे कोई /
उम्र भर मैंने उसे तनहा कभी चलने न दिया //
मेरे गजल संग्रह '' तुम भी इसी शहर में, हम भी इसी शहर में " से लिया गया

शकुन्तला चांदनी रात में दुष्यंत का इंतजार करते हुए

शकुन्तला

शकुन्तला
भोजपुरी शकुन्तला मेरी एक ऐसी कृति है जिसके लिए मैंने अपनी पुरी क्षमता के साथ काम किया है। पाठको का स्नेह भी मुझे मिला है जिसका मैं जीवन भर आभारी रहूँगा। मेरा यह इन्टरनेट ब्लॉग उन पाठको के लिए है जो मेरी प्राण - प्रिया पुस्तक शकुन्तला का अध्ययन नही कर सके। भोजपुरी में लिखी गई "शकुन्तला "उनको समर्पित है।

Dr. Iswarchandr tripathi

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jiwan ka sara bhar aapke hatho me..Meri Shakuntla...

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डॉ ईश्वर चन्द्र त्रिपाठी
डॉ ईश्वर चन्द्र त्रिपाठी पिता-स्व.सत्यनारायण त्रिपाठी शिक्षा- एम.ए. ( हिंदी ) , एम. एड. , पी-एच. डी. प्रकाशित पुस्तकें - शकुन्तला ( भोजपुरी खंडकाव्य )दमयंती ( भोजपुरी खंडकाव्य ),न तो कश्ती मिली न किनारा मिला ( मुक्तक संग्रह ),तुम भी इसी शहर में हम भी इसी शहर में (गजल संग्रह)(अनेक रचनाएँ अप्रकाशित ) पुरस्कार - उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा "शकुन्तला खंडकाव्य" पर "सर्जना पुरस्कार" सम्मान - अंतर्राष्ट्रीय भोजपुरी संगम में महामहिम राज्यपाल ( उ.प्र.) आचार्य विष्णुकांत शास्त्री द्वारा सम्मानित सम्प्रति - श्री दुर्गा जी स्नातकोत्तर महाविद्यालय , चण्डेश्वर, आजमगढ़ ( उ. प्र.) के बी.एड. विभाग में अध्यापन विशेष - पत्र पत्रिकाओं में लेखन , काव्य मंचों पर आकर्षक काव्य पाठ व उत्कृष्ट संचालन सम्पर्क - ग्राम व पोस्ट - मंहगुपुर धाहर( अतरौलिया ) आजमगढ़ , उ. प्र. , भारत २२३२२३ मोबाईल नंबर - 9455885866
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