साँझ -विहान कै रंग गुलाबी ,के रोज लगावै, के रोज मिटावै /
बागि लगावै ,के फूल फुलावे, नदी के कछारे बतास डोलावे,
यैसन राज कै राजा बा के ,जे नियाव पे राज चलावै//
ऊंचि अदालत लागलि बा ,ऊपरा बइठल जग -जीतल राजा ,
साजलि बा खोरिया -खोरिया ,भल बाजत बा मन मोहक बाजा//
बाभन बइठल हैं बगले ,अगवां ,बैठे सब सैन समाजा,
फुललि नाही समाति शकुंतला ,भुललि याद भइल फिर ताजा//
जइसन काने सुनात रहल ,वहु से वरियार दुवार किला बा ,
पूरब -पश्चिम -उत्तर -दक्खिन,चारो दिशा मे सिवान मिला बा /
जेके निहारै तैं रात-दिना,नयना तोरे आगे ऊ रूप खिला बा
फरकत दाहिन आँख तबै,अनहोनी बिचार करेज हिला बा //
सोची -संकोची शकुंतला ठाढ़ी खड़ा अगले -बगले गुरुभाई ,
धीरज देत सनेह निचोरत ,आँचर फेरती गौतमी माई /
पाई सनेश नरेश चलें ,इहै जनि दुवारे खड़े द्विज आयी ,
माथ नवाय कहै केस नाथ ,पधारा खुदे न लिहा बोलवाई //
पीयर -पीयर बा धोतिया ,कन्न्ह्वा पे जनेऊ कै बा पियराई ,
जोग कै पोखाल देह निरोग ,आ लाल लिलारे त्रिपुंड लगाई /
बोली मे घोरल बा मिसिरी ,भल विद्या -विवेक कै बा अंगड़ाई ,
हैं असमंजस में नृप देखि के ,साथ मे ई कईसन सुघराई //
सूरज -चान के बीच खरी ,जेस सांझे -बिहाने के है सुघराई /
सोतो आकाश मे ,ई ब्रम्हांड मे,कवने नक्षत्र के बाय ललाई ,
देखि न पउली कबो सपना मे ,औ सोच न पउली ई सुन्दरताई ,
साज कै शान औ विप्र कै मान ,निवाही कहै मानभाव दबाई //
बाधा परे गुरु पूजन पाठ मे,या केहू नीच दिही दुःख भारी ,
या बदरा बरसे वन मे नाही ,सूखती बा फूलवारी नेवारी /
कउन कलेश परल उपरा ,अइला अपुने खुद दास दुआरी ,
नैन निचोरि ,दसो नह जोरि ,धरै द्विज पाव में ताज उतारी //
बोले शकुंतला कै गुरुभाई कि ,हेतु बतावै तो आयल बाटी ,
जानत बाटा कुली बतिया , यही कारन से चुपियायल बाटी /
पूँछत बाटा फेरू हमहीं से ,यही बनवा से तो घायल बाटी ,
सागर मे उतिरायल बाटी कि , जाय जमीनी समायल बाटी //
बाटा ,तबो अनचीन्ह के नाटक से हमके न भुलावा ,
तूँ मृगया मे गुरू -चीन्हततनया से ,मठे में सनेह वियाह रचावा /
पांच दिना कहिके अइला ,फिर गइला न काहें हमे तूँ बतावा ,
अइने गुरू सब जानी खुशी मन ,किएने विदा सब साज सजावा //
ऊहे श कुंतला आइल है ,शरमाइल ठाढ़ बनी अनजानी ,
जे रहनी द्विज कै धेरिया ,उहै आज हई यही राज कै रानी //
पालती बाटी करेजे में ई ,तुहरे कुल वंश कै एक निशानी ,
हे जगनायक ! तू अपनावा ,बड़ी बहिनी मोर बाय नदानी //
डोले आकाश मही धंसी गै ,सगरो ब्रह्माण्ड लगावत फेरा ,
सूरज -चान दूनो छिपी गै ,जेस लागत बा अन्हियारे कै डेरा /
माथ धरै, नृप कान ढ़पे कहै ,यईसन बानी फिरू न उकेरा ,
बाढ़ल बा मरजाद मोरे कुल कै ,महराज !तू पानी न फेरा //
ध्यान न आवत बा कहिया ,हम करतै शिकार मठे चली गईली,
ना घर कै मलिकार तबो ,ओनकी बिटिया से बियाह रचउली/
याद न बा कहिया अपने ,हाथवा अपने घर आगि लगउली,
पाप न बोझाकेहू कै हमे,भगवान! करा तनी बीच -बिचउली //
पाप कुबानी परे जब कान,शकुन्तला,लागत बान कि नाई,
लागली बा अगिया पहिले से,ई देखि के राजा कै नीच -निचाई /
आगे न चीन्हत आज हमें ऊ जे पूजत मोर कबो परछाई ,
दखी न आज मुहां यनकै,अपुनै कहूँ जाय नदी धंसी जाई //
बोली न बा ई त गोली है राजन !जइसे करेजे मे दागत बाटा ,
आज दुवारी पे तू अपने ,अपने कुल -धर्म से भागत बाटा /
पीयत क्रोध कहै द्विज राजन !सूतल बाटा कि जागत बाटा ,
सांवर करतब,झूठ कै पानी,चढ़ावत नीक न लागत बाटा //
जो बहिनी तै धियान धराव ,बजाई के प्रीती कै छूटल तारी ,
शूल धंसल पतझारे कै रोज ,भले सिंचतै रहलू फुलवारी /
तू पुजलू जेके भागीरथी कही,ऊ बनी गईनै नहाने कै नारी ,
राजा न बा कुल फूंकन बा,कै नारी बियाहल बा व्यभिचारी //
बोली शकुन्तला आगे तिराई के ,यइसन नाची नचावा न स्वामी ,
बा जग जाहिर नांव तुहार त ,काजर पोती मिटावा न स्वामी //
राज घराना कै इज्जती इ ,कोलिया -कोलिया में छिटावा न स्वामी ,
पानी नदी कै समुद्र पसारी ,पहाढ़ पे नाय चलावा न स्वामी //
का चुकीगै यतनै दिन में तोहरे अनुराग कै बोझली थाती ?
या जरीगै उवतै वीरवा ,तोरी ,प्रीती में न अखुवाइल पाती ?
लोप करा न अन्हेर करा ,न -बुतावा इमाने कै दीया औ बाटी ,
राजा हया तो नियाव करा ,कुलटा हम बाटी ,कि तू कुल घाटी ?
फूल औ पाती के मंडप में ,बनदेवी के आगे वियाह रचउला ,
लाजी कै बाती का आगे कहीं ,फिर बातिन -बाती में बाती बनउला //
जो भरी आयल मोसे मना,हिगरै वदे राज सनेश सुनवला ,
प्रीति के गायें बजार लगाई के ,राजा भले रोजगार चलउला //
राज समाज बने पथरा ,असमंजस में पुतरी परे डोरा ,
रानी बनउले बा जे घुंघुटा ,उडीगै बिन आन्ही झकोरा //
आगे खड़ा नृप मूरति हवे ,अंखिया चढ़लीं बनी खून कटोरा //
ई तिरिया कै चरित्तर है ,चुटकी लैमारत बाते कै रोरा //
ऊहै मजाक उड़ावत बा ,जेहसे मरजाद कै प्रश्न जूडा बा ,
का दुनियां मरदे के बादे ,मेहरारू कै ना कवनो टुकड़ा बा //
यइसे बिचार उठल उदगार ,बड़ा बरियार फनल झगड़ा बा ,
पूरब से चली घटा ,पछुवां ,भल बादर ले उमडा बा //
मैं हिरनी तरे ढूकल जालों ,तू व्यंग कै बान चलावत जाल्या !
आगि लगाई मोरी देहियाँ ,अपनै दरी नून लगावत जाल्या //
देइ मुनरी अइला हमके ,इहो झूठें बा ,जवन छिपावत जाल्या,
इज्जति का मरदे मेहरारू कै ,जानि के बात बढ़ावत जाल्या //
जोर लगावत माथे पे राजा,न ऊबति बा एक होंशी कै रेखी ,
आज दिना मोर कइसन बा ,भगवान तुहार बा कइसन लेखी //
भूललिबाटू ,भुलाइल बाटू ,लगावति बाटू फरेब कै शेखी ,
एकउ पंथ से ना जितलू,एक पंथल और अंगूठी त देखी//
पंथल ना कवनों छल ना ,छलिया नहिं आयल ,ना कुछ लूटी,
जादू औ टोना न जानी केहू ,टोंगवा गठियउले जड़ी नहीं बूटी //
ई जिनगी कै सवाल बड़ा ,मोरी इज्जति कै परिमान अंगूठी ,
दूनऊ आंखि चली बहतै ,जइसै गंगवा जमुना चली छुटी//
आपस में बतियावै सबै, कहो ,ई मेहरारू बा कइसनआइल ,
ना दुबियो कै कहीं मुनरी भला ,कावदेखाई ,ई बा पगलाइल/
[शीर्ष पर है ]
यहि ओर लखै,वहि ओर लखै,हर ओरी निगाह उठावै-गिरावै,
बीच बजार खड़ी पगली , अपुनै -अपनै मरजाद लुटावै/
राज -समाज सबै उठि गै ,तिरिया कै चरित्र कहै गोहरावै,
भै बुत ठाढ़ी,जमीन मे गाड़ी,पछाड़ी-पछाड़ी गिरै फिर धावै//
ध्यान करै -अनुमान करै,मुनरी कै निशान कयास न आवै ,
आज मिला अभिमान के हाथे,बड़ा अपमान ,इहै फिर आवै /
कांपति है दरबार के बाहर, हाथ हिलावै न,गोड़ डोलाव
टूटलि बा सपना कै इमारति,चूर बटोरि के ढेर लगावै//
जे चलनी बनै दुईज कै चान,ऊ धरती पे आज उतारलि गईनी,
काल्हि सँवांरलि गइनी सनेह से ,आज उजारिबिगरलि गईनी /
ई तकदीर लाख अनमोल जे, ऊ कगदे तरे फारलि गईनी,
रानी बनै बदे अईली जहाँ ,वहि राज से आज निकरलि गईनी //
सौ -सौ सनेहन कै सपना, अपनी अंखिया से लुटाय चली है ,
गईल दिना कै बिगरलि इज्जति ,बान्हि करेजे मे हाय चली है /
साँच हेराइल झूँठ के भीरि मे, पीसि के माहुर खाय चली है ,
भाई औ माई के पीछे दुखी ,घवही हिरनी अकुलाय चली है //
आवति बा कपिला के तरे ,मोर राजघराना से डाहिल बेटी ,
गौतमी माई कहै समझाई के ,ना मिलतै मन चाहलबेटी //
वेद औ शास्त्र कहैं निक बा,पति के परछाईं में रहल बेटी ,
सासुर में चाहे जइसे रहै,नाहीं नईहर सोहै वियाहल बेटी //
केहू साथ हमै लई जात न बा ,हम न जनली केहि बाट के भईली,
इज्जति,मोहि -मया सगरो,तोहरे ओनके बीचे बांटी के ईली/
यईसन नाय चलौली शकुन्तला धार के भईली न पाट के भईली,
धोबी के कुक्कुर जईसन हम घर कै भईली नहिं घाट कै भईली //
मोर करेज त जरल जात बा,तोर करेज त शीतल होई ,
ना सुनली कबों यईसन हलि,कबों अगवां नहिं ई छल होई /
ऊहै दबावल जात रही इहाँ जे कवनो तरे नीहल होई ,
राजा हया तूँ तबो पईबा फल राम के हाथे मे जो बल होई //
तूँ जवने कुल -खूंट के बाटा उहाँ हर साँझ उदासी बा छउले,
उलटली राज नियाव के बानी बिना अपराध के फाँसी चढ़उले /
राजा ययाति तोरे पुरखा,अपने ,करनी उपहास करउले,
रानी बनी देवयानी जहां ,वहीं रानी शर्मिष्ठा के दासी बनउले//
मोरे बदे जनु बा ओठघावलि चारो दिशा कवने पड़े जाई,
बाँटे आकाश न फाटे जमीन,समुंदर सूखल कहाँ समाई/
आपन केहू देखात न बा,जेकरे अगवां, दुःख आपन गाई,
कईसे नियाव के आस करी,जहाँ राजा खुदै यतना अनियाई //
सूरज -चान तनी अउता सुनि लेता गोहर मोरी दुखिया कै ,
आज बयार तुहीं रुकि के पोंछतू अंसिया,हमरी अंखिया कै /
माई न बा सग भाई बा,केहू न गहंकी हमरी मखिया कै ,
छोट बदे त अदालत लागति ,बात बा ई बड़के मुखिया कै
रात-दिना पुजली तोंहके का, यही दिन खातिर जवन देखऊला,
फूल -कली कहि के चुनला,फिर कांकर-पाथर कईके बहऊला/
आगि लगऊला मोरी जिनगी,अपने कुल-खूंट में दागि लगऊला,
हांकिन-डाँकिन कै हमके ,मेडिया, खोरिया-खोरिया भरमऊला //
ई बदला लेहला हमसे, कवने जनमे कै न जानत बाटी,
खोटि भइल तकदीर कहाँ,इहै बईठी इहां अनुमानत बाटी /
भै फटही लुगरी जिनगी ; टोंगवा,धई सीयत- तनत बाटी,
फाटल जाल बहाय नदी, डिडवा नरई तर छानत बाटी //
यईसन जादू तुहार चलल, हम आम कहै लगली के,
कै चललीं असधार तुहार ,न थाह लगउली है गाँव -गली के /
पाथर मारि गै बुद्धि मोरे ,समझऊलै न केहू हमै पगली के,
चन्दन छांह उजारि के तूं,बईठउला है,छाँहें हमैं तितिली के //
जात न बा केहू मोरे लगे से,केहू हमरे ढिग आवत नाहीं ,
लात तरे लातियावल बाटी,केहू धई बांह उठावत नाहीं /
`खेत सँवारे सबै बनलै ' केहू सूखलि थाहि ओनावत नाहीं,
भीजत-तपत जात केहू टुटही, छानियां में बोलवत नाही//
के सग माई है,के सग बाप है,के जनमउले इहो नहि जानी ,
बाबा सनेह से भईली सयान,नेवारी कै लईया तलईया कै पानी /
काने सुनी मनिका महतारी बा ,बाप हैं गाधि लला मुनि ज्ञानी,
तेकर बेटी ढुरै मेडिया-मेडिया,ठिकरा भरि पीयत पानी //
केहू सनेश तनी भेजता,मोरी माई के इन्द्रपुरी से बोलउता ,
मोरी विपत्ति कै ध्यान धराई के,जाई के बाप कै ध्यान तोरोउता/
बेटी तुहार बुरे परिगै ,यही पापी के आय तनी समझउता ,
सोझे न मानी ई मस्ती में बा,यही हस्तिनापुरी में आगि लगउता//
बाबा कण्व के बोलावती बा,ओनकी नेहिया कै सांवरल बेटी ,
आग से डाहलि जाति इहाँ ,तोर पाललि-दुलारलि बेटी/
आय के देखा तनी अपनै,हक़ हारलि देश निकारलि बेटी ,
आज जो अईबा त जीयत पईबा,बिहान से पईबा तू मारलि बेटी //
मोर ढुरै अन्हरी अंखिया,जनु रोवत हैं मठ कै रहवईया,
फूल -कली पगली तितिली ,अंवरा-भंवरा,चकवा औ चकईया/
दहकत आग करेजन मे, थिर न हिरना डुहँकै कहूँ गईया,
नेह निचोरति गौतमी मईया ,त कान्हें पे कान्ह धरे गुरुभईया //
जेके बदे यतना जने रोवत सोवत हैं मुहवाँ धई धोती ,
टूटै पहाड़ करेजन पे अंखिया,भरि आवै समुद्र कै सोती /
तेकर हारलि आज बाजार में माटी मोलवति है धई मोती,
ई राजपूतन कै करनी ,अपुनै अपने मुंह काजर पोती //
माटी में मोहीं मिलऊला तबो,भगवान करै तोर कीरति बाढ़े,
पास-परोस में देश -विदेश ,आकाश -पताल में तूँ रहा ठाढ़े /
देखै कुभाव-कुनेह से जे,ऊ खुदै अपनी तकदीर के डाढ़े,
तूँ पुतरी से गिरऊला हमैं,तोर राम करै केहू काजर काढ़े //
काल्हि के रूप अ आज कै रंग,बिहान के पानी कै का गति होई,
ई बचकानी के भूल सयानी,ई बूढ़ी जवानी कै का गति होई /
काल्हि कै सुनल आज कै देखल ,आगे कहानी कै का गति होई ,
पालल मोर सनेह कै फूल,ऊ तोरे निशानी कै का गति होई //
माई के बाहीं औ बाप के छाहीं ,खिली फुलवा जब होई दिवाना,
होतै सयान समाज लगी पूछैं बाप कै नांव अ पता ठेकाना //
ना ढीठियारे के आंची लगी कुछ ,काना कै नांव सुने जरी काना ,
नौ -नौ पांती कै आंसू ,ढुरी जब ,मारी जमाना ई साधि के ताना //
आपन सोचि न बाय हमैं ,हमतो भइली जग बीच उघारी ,
प्रीति परोसल गै हमरी,अंगना- अंगना अ दुवारी -दुवारी //
उ अनजाने कै दोष इहै ,तोर रूप धरै बसि कोखि हमारी,
काठ करेज न यइसे करा ,कंकरी के चोरउले न मारा कटारी //
रोवत देखि शकुन्तला के ,खोंतवा-खोंतवा चिरई अकुलानी ,
पाथर फोरि पहाड़ ढुरै ,डुहुंकै नदिया औ समुद्र कै पानी /
देव रोवैं, देवराज रोवै सब ,राज-समाज रोवैं देव रानी ,
आज के दै अंकवारि संवारि के,भूत-भविष्य कै रोवै कहानी //
पात झरै बनपेड़न से,नवधा फुनगी-फुलवा कुम्हिलईने,
जंगल के पशु-पांखी रोवै,भँवरा संग आज बतास हेरइने/
सूरज-चान ढुरै अंसिया,रोवतै रहनै रोवतै रहि गईने,
घेरे शकुन्त शकुन्तला के,खलियै खोंतवा खलियै रहि गइने//
लै सुसुकी डुहँकै बिटिया,महतारी करेज के फारत जाले,
टेर सुनी त अधीर भई,जिनगी मोर आज अकारथ जाले/
भै अजगूत, कहीं अन्हियार,कहीं उजियार उतारत जाले,
लै बिटिया के आकाश चली,बदरा अंचरा तर फारत जाले //
[चतुर्थ खण्ड]
भूख-पियास कै ई दुनिया,न अघाई कबों,रोवतै रही रीती ,
आपनि बानि न देखी कबों,दुसरी अंखिया सपना परतीती /
ई दुनिया कै इहै सच बा,केहू हारी इहाँ न केहू इहाँ जीती ,
लाख-करोर के बाति इहै,पछताई मना जब अवसर बीती //
ई जिनगी त बनी पहिया,कबों खाले पड़ी त पड़ी कबों ऊंचे,
दूर सिवान में जाई भुलाई तो,पूँछि चली,कबहूँ बिन पूंछे /
बोझल जाई अ बोझल आयी,कबों दिन-रात चली व्है छूंछै,
का पवला ठुकराई शकुन्तला के , जाय केहू दुष्यंत से पूंछे //
भै दुर्वाशा कै शाप सकारथ,ई मुनरी कईले बड़ खेला ,
राज के ताज पे जे रहलीं,ई बनउले है ओके सिवाने कै ढेला/
फेरत नाहीं अबेर लगै,शमशान बनावै जहाँ रहै मेला ,
कईसे बखान करी भगवान,जहान तुहार बड़ा अलबेला //
पानी के पूजा में ई मुनरी,अंगुरी से गिरल पनिया मे समाइल,
जाय गिरी मुह मे मछरी के,ज फेरति पाँखि लगा चलि आईल/
आईल बाजार में एक दिना,माछुवारा के हाथे से पेट फराईल,
ई रंगदार बड़े नग कै मुनरी,झलकै अंखिया चुन्हियाईल//
भै चरचा मुनरी-मुनरी,जब राजा के कान पड़ी यह बानी,
चाकर भेजि मगाय लिहे,अपनी उजरी नेहिया के निशानी/
नैन पड़े चित चैन उड़े,मन में हरियाईल घाव पुरानी ,
टूटि पहाड़ गिरै उपरा,हड़होरल जईसे समुद्र कै पानी //
ठाढ़ भई पुतरी त खड़ी जेस,सांसिन पै किरिया झट लागी,
नील अकाश लगे सतरंग,दुनहूं अंखिया सरिता तट लागी /
भूललि याद कयासे परै,परतै-परतै उतरै चट लागी ,
हाय शकुन्तला! हाय शकुन्तला!,हाय शकुन्तला कै रट लागी//
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