शकुन्तला और दुष्यंत की प्रेमकथा भांति - भांति के रंगों से सजी हुई है। खासकर इस प्रेमकथा के विरह वर्णन का तो कोई विकल्प ही नही दिखाई देता है। बस इसी को सहेजा है आपके इस भाई ने शकुन्तला और दुष्यंत की प्रेमकथा भोजपुरी भाषा में ......
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी
कृपया अपने सुझाव मेरे मोबाईल नम्बर ९४५५८८५८६६ या मेरे ईमेल पते itshakuntla@gmail.com पर अवश्य दे । हमें आपके अमूल्य सुझावों का इंतजार रहेगा । बस इसी आशा के साथ
आपका अपना अनुज ......
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी
व्याख्याता ( बी .एड .विभाग )
श्री दुर्गा जी स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय , चण्डेश्वर, आजमगढ़
गुरुवार, अगस्त 06, 2009
शकुन्तला और दुष्यंत की प्रेमकथा भोजपुरी भाषा में
भोजपुरी शकुन्तला (प्रस्तावना)
पनियां पर पाई जे पारत आइलें ।
बाहीं कै जोर बरोर बड़ा ,
चाहे धापत,चाहे उघारत अइलें ॥
पुण्य कै टाटी संवारे जहाँ ,
वहीँ पाप अटारी उजारत अइलें ।
वहि राजा भरत के भारत में ,
घर भर मिलिके महाभारत कइलें ॥
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी
शकुन्तला प्रथम खंड (१)
बान्हत है छेगरी के तरे , दंतवा गिनि डारत ओठ उघारी ॥
तेज प्रताप कै खानि रहे , बचकानी क बा बणी कीरति भारी ।
तेकर बाप बने है दुष्यंत , शकुन्तला रानी बनी है महतारी ॥
आज तनी इतिहास उलाटी , औ हेरत खोजत कीं अनुमानी ।
न सोझवे पतियाती बा बाति, औ ना उतरे गटई तर पानी ॥
एक ते सोने के टाठी में खात है , दूसर तौ वन-पात में खानी ।
इ राजा के बेटा , ऊ साधू के पाललि, कैसे बनें भला दूनों परानी ॥
चंदर वंश कै शोभा बने , औ राजा ययाति के मान कै थाती ।
पौरव वंश के पुण्य प्रकाश , तरे झलकै बनि दीप कै बाती ॥
राजा दुष्यंत कै दुर्ग धुजा , लहरै लखि फूलत इन्द्र कै छाती ।
चाहें दुवारे असाढ़ झरे , चाहे आँगन में बरसावें सेवाती ॥
राजा सबै लड़ी हारी गए , नहि रोकि सकै केहू एक झकोरा ।
बइठे सिंहासन पे दुनिया के औ, तीनहू लोक पिटाये ढिढोरा ॥
बीते दिना यईसे - वईसे , इतिहास लिखै लई कागद कोरा ।
खेलै शिकार चली वन में , सपना उमड़ी, पुतरी परै डोरा ॥
सेन सजी हथिनापुर की , सब साथ चलै अगले बगले में ॥
जोडि के गोड़ भगै हिरना , नहि बान लगै अगले - पिछले में ।
धावत धूपत धूसर भै मुंह , भेद न बा जगले सुतले में ॥
शकुन्तला प्रथम खंड (२) शकुन्तला मिलन
राजा निहारति है बनि मूरति , चाहत है केतना लेई देखीं ।
शकुन्तला प्रथम खंड (३) शकुन्तला मिलन
कबहूँ देहियाँ कै कसल बन्हना , हमसे कहि ढील करावत बाटू ॥
अब लागे जवानी कै पानी तुह्नै , यतनै बस जानि न पावत बाटू ।
हमे लागत बा सपना में कहूँ , घर चान के गाँव बसावत बाटू ॥
ई कजरी -कजरी अंखिया ,गोरके मुंहवा पे कहाँ फ़िर पईहैं ।
तोरे बारे के छाहें बड़े मन से ,गर्मी ,बरसात ,जुडात बितईहै ॥
कान्हे कै भार , औ देहीं कै अईठन दूनो मिटइहै न तौ कहाँ जईहैं।
बोलवाई ले राजा दुष्यंत के तैं, तोर भवरन से झगरा तोरवेहै ॥
शकुन्तला प्रथम खंड (4) शकुन्तला मिलन
घुमत - घामत ,आवत - जात की ; बाबा येके पवनै उसरे पै
बाप बने तबसे यनकै ,बकी , ई सग खून हयी दुसरे कै ।
पालत - पोखल बाभन है बकी, ई बिटिया हैं केहू ठकुरे कै॥
ओंठसे छुटति बात हहात की ,राजा ख़ुशी मन से बोलत तूती।
जाति कै बानि उहो टूटी गै , भगवान् कै लागत बा अजभूती॥
राही कै रोड़ा हटावत जाल्या , न जानी परै तोहरी करतूती ।
रानी बनी , या कि येके बदे हमहीं के लगावे के परी भभूती॥
बात सही न बतावत बाटू जनात बा देति हऊ तूँ छलावा।
जानि अजान अनारी हमैं, भरमाँय घुमाँय के देलू भुलावा ॥
साफ़ बतावा न तूँ बगदावा, अन्हारे मे न अब बान चालवा।
कइसन ठाकुर कै बिटिया ,बभने घर टूडत लावा ॥
शकुन्तला द्वितीय खंड (1)
जाय चिढावती है संखिया ,जबरी नहवावती पिटती तारी ।
शकुन्तला द्वितीय खंड (2)
शकुन्तला दूतीय खंड (3)
छोड़ि के अन्न औ पानी सबै , जियतै मुरदा यस लागति बाटू
ढूरित बा अंसिया अखिया , मोतिया अचरा धैई तागति बाटू ।
फुटली भाग तुहार शकुंतला, सुतति बाटू की जागती बाटू । ।
रोवती बा चकई कतहु , चकवा नदिया पे उदास पियासा ।
कइसे रही अपने अगवें पलटै, केहू कै तकदीर कै पासा । ।
कांपती बा रहिया - बटिया, पतिया झरै पेड़ से दुरत लासा ।
केहू के भागी पे आग धरै , जनु धावत आवत है दुर्वासा । ।
सूरज बंद करे अखिया, कहू , धैएके करजे बतास पडावा ।
चान तरीया लुकाई फिरे जनु, होवन चाहे अनर्थ बदबा । ।
बान्हल जात बा पंख तुहारत, सोनन चानिन कै पिंजरा बा ।
याद में भुलली बा बिटिया, रिसिहा - योगिया अगवारे खड़ा बा । ।
शकुन्तला दुतिय खंड (५)
भौह कमान तनी मछरी , अखिया, में धसें कजरा नरई बा । ।
ओठ ललाई लगे जेस उबली, बा धनुही बरखा कै नई बा ।
ना गिरिजाय कही बिजुरी , अबही बढ़ नांह लगे जरई बा । ।
हार बनै कचनार कै फूल, लोंढे छतिया पे करेज में झाक़े ।
पोरे पोरे कसी मुनरी नग, गीत लड़े चुरिया कंगना कै । ।
हाथ गदोरी रची मेंहदी , भल गोंढ ललाई लगे रंगना कै ।
हेरति खोजति जाति जवानी , जनो अंगना अपने सजना कै । ।
आगे चले गुरु औ गुरुबेटी, कि चीनह धरे पिछवै सब डोले ।
होत हज़ार करेजे कै टुक, ढ़ूरै अखिंया मुह से नहीं
भटति देति सबै अक्वारी तरे, सुसुके मुहवा नहीं खाले ।
तोर बिदाई लगे सबके जइसे जियरा तरवारी से छोले ..
शकुन्तला दुतीय खंड (४)
जोहती बा रहिया, रतिया मन, अइहै कै लागै अनेशा । ।
छोरति बा गठिया जिनगी कै, उधेरति बिनटी रेशा पे रेशा ।
लागति इन्द्रपरी तरे जे उ, बनउले बा आज फकीरे के भेषा । ।
आवत जात की देखत बाबा, कहें तकदीर कै लेख के मेटी ।
भें गोरकी देहिया कजरी , खखरायेल, बा गली माँशु कै पेटी । ।
देखत की भभरे अखिया, मन चाहत धे अकवारी में भेटी ।
राखल ना भल ढेर दिना अपने , अंगना में बिहायल बेटी । ।
रोज विचार करे मिलिके, सब बाबा औ आश्रम कै रहवइया ।
धार, उधार बही कैइशे , नहीं, नाय चली बिन एक खेवइया । ।
होई बिदाई शकुन्तला कै , अनुमाने सबै मिली चान तरेइया ।
छुटी सखी परिवार सबै गैईया, मइया , मिरगा, गुरु भइया । ।
भोर भये खुलली अखिया, सखिया, मिली जाय जगावती बाटी । ।
नाव शकुन्तला कै लइकै, भरी हांक पे हांक लगावति बाटी । ।
नेह कै दूरत बा झरना गितिया, शुभ कै मिली गावती बाटी। ।
मिजी सबै नहवावती बाटी औ, पोरई पोर सजावटी बाटी । ।
गोर अंगार त बाटी तबों , हरदी उपटावन मीजल जाली ।
साजी सिंगर करें सोरहो, ओकरे उपरा खुद रिझल जाली । ।
रेहन होते सनेह कै खेत यही , अंचिया तर सीझल जाली ।
हाले करेज बिछोह कै गीत, धूरे अंखिया सब भिजल जाली ।
बानहत बार , गुथे चोटिया केहू , काने में डारत कुंडल बाली ।
फूलल फूल बनै गजरा, जुरवा में , जरे मिली हाली अ हाली । ।
आंचर ओढ़ी ओढाई के देखत, डारत सुन्दरताई कै जाली ।
कर्धीन बा करियारी में बानहिल झुलती बा भल घुघुर ताली । ।
शकुन्तला दुतीय खंड (५)
शकुन्तला द्वितीय खंड 6
रोकि बतास बहार कहै अबकी , फुलवा के फुलाये न देबै ॥
मींजति आँखी कहै बदरी ,बरखा में केहू के नहाये न देबै ।
गोड़ लपेटि लता बिलखे, अपने घर से तूहैं जाये न देबै॥
शकुन्तला 12
pk�u vUgkjs esa vkor gS]
fnu ybds tgku esa lwjt vkoSA
lk�>&fogku dS jax xqykch]
ds jkst yxkoS] ds jkst feVkoS \
ckfx yxkoS] ds Qwy QqykoS]
unh ds dNkjs crkl MksykoS \
;blu jkt dS jktk ck ds(
ts fu;kc is vkiu jkt pykoS \
�ijk cbBy tx&thry jktkA
lktfy ck [kksfj;k&[kksfj;k]
Hky cktr ck eu eksgd cktkAA
ckHku cbBy gSa cxys] vxok�]
cbBS lc lSu lektkA
Qwyfy ugha lekfr �kdqUryk]
Hkwyfy ;kn Hkby fQj rktkAA
tblu dkus lqukr jgy]
ogqls ofj;kj nqokj fdyk ck!
iwjc&if�pe&m�kj&nfD[ku]
pkjks fn�kk ls floku feyk ckAA
tsds fugkjS rSa jkr&fnuk]
u;
Qjdfr nkfgu vk�[k rcS]
vugksuh fcpkfj djst fgyk ckAA
शकुन्तला 14
रोकि बतास बहार कहै ,अबकी फुलवा के फुलाये न देबै /
मीजति आंखि कहै बदरी ,बरखा मे केहू के नहाये न देबै
गोड़ लपेटि लता बिलखै अपने ,घर से तुहै जाये न देबै //
आगे पडै पशु -पंखी कै बाल,उठावति चूमि दुलारति जाले,
बेला -चमेली के दै अंकवारि ,लगाय करेजे संवारति जाले /
नेह कै पेड़ नेवारी न सूखै, पियासे न केहू तिखारति जाले,
बाबा ! मंगइबा हमै कहिया ,कहि आगि हिया उद्गारति जाले//
बाबा आशीषें ढुरै अंखिया कहैं ,जा बिटिया मोर मान बढ़ावा ,
राजा कै तू उरहार बना ,बढी,रानी शर्मिष्ठा कै तू पद पावा /
शान बढ़ावा दूनोघर कै ,कनियाँ , दुनिया कै नरेश खेलावा ,
जीवन जीति के तूँ सगरो ,चौथेपन में हमरे घर आवा //
शकुन्तला 15
लोटि-लपेटि के भेंटति है ,जैसे भिनसारे कै दीया औ बाती /
सोचै कि होत विदा बिटिया ,सुसुकै वन पशु , फूल औ पाती,
यइसन हाल हमार जो बा ,भला फाटै न कइसे गिरहस्ते कै छाती //
जा जल पूजन- वन्दन कै ,वनदेवी के फूल चढ़ावा ये बेटी ,
छोड़ति बाटू सिवान हमार,सिवाने के माथ नवावा ये बेटी /
छोडि के मोहि -मया यहिकै ,अगिले घर लगि लगावा ये बेटी ,
मान बढौलू तू नैहर कै ,ससुरारी कै शान बढ़ावा ये बेटी //
जा जल वन्दन करा शकुंतला ,या अपनी तकदीर के भूजा ,
खांचल लाल लिलार पे जौन बा ,होई उहै, नहि होवै के दूजा //
मानल बा पपिहा बनि रोवै के,कइसे भला बनी कोइल कूजा,
भागि जरै जवने में पुजारी कै, ना सुनली यस पानी कै पूजा //
पानी के पूजन बंदन में ,मुनरी दुष्यंत कै खोवती जाले ,
राजा मिलें ,मिली राजघराना मनें-मन माला पिरोवती जाले //
जीवन कै सुघरा सपना ,नयना ,अयना में संजोवती जाले ,
रोवती जाले निहारी के नइहर ,सासुर कै पथ धोवती जाले //
________*****#*****_________