गुरुवार, अगस्त 06, 2009

शकुन्तला दूतीय खंड (3)

जंगल के पशु पाखी कहें , अपनै देहिया भल दागति बाटू ,
छोड़ि के अन्नपानी सबै , जियतै मुरदा यस लागति बाटू

ढूरित बा अंसिया अखिया , मोतिया अचरा धैई तागति बाटू ।
फुटली भाग तुहार शकुंतला, सुतति बाटू की जागती बाटू । ।

रोवती बा चकई कतहु , चकवा नदिया पे उदास पियासा ।
कइसे रही अपने अगवें पलटै, केहू कै तकदीर कै पासा । ।
कांपती बा रहिया - बटिया, पतिया झरै पेड़ से दुरत लासा ।
केहू के भागी पे आग धरै , जनु धावत आवत है दुर्वासा । ।

सूरज बंद करे अखिया, कहू , धैएके करजे बतास पडावा ।
चान तरीया लुकाई फिरे जनु, होवन चाहे अनर्थ बदबा । ।
बान्हल जात बा पंख तुहारत, सोनन चानिन कै पिंजरा बा ।
याद में भुलली बा बिटिया, रिसिहा - योगिया अगवारे खड़ा बा । ।
चारिउ ओर लखे दुरबासा , केहू केहुओर परे न देखाई ।
क्रोध मे कापती बा देहिया, बदरी अंखिया अनहरी - खउनही । ।
माला औ मंत्र कै ध्यान कहा, पनिया औ कमंडल देने बहाई ।
भौं टरेरी गुरेरी के फेरिके , देने सराप ई हाथ उठाई । ।
सुन आकाश रही न रही, तोहरे अंगना अब चाँद न आयी ।
जियत तू रहबू तबका, तोहके, जिनगी कै सवाद न आयी । ।
ना कबो येइशन भईल रहल, अगवा कवनो दिन बाद न आयी ।
ना चिन्हालू जकेरे सुधि , ओके, बिना मुनरी तोर याद न आयी । ।
ना जनले अभेई पगली, यतनै छन मे केतना कुछ भइने। ।
खांचे कही तकदीर विधाता, केहू हथवा बिन चिन्हा के कईनै । ।
जाय समुद्र आकाश समांइल, सूरज, चान समुद्र समइने ।
साजिल भागी के तौंगे तोरे, दुरबासा ई आगि लगावत गईनै । ।
जोहती बा असरा लईके, दिन, जागती बा , रतिया नहीं सोवे ।
धीरज कै बनहना जेस टूटत, ले अंचरा मुहं दापी के रोवे । ।
गौरी - गणेश उठावती है जो कै , जरई अंगना भरी बोवे ।
तीरथ से जब अइले है बाबा, सबै पारी परमे से धोवें । ।
हेरती बाबा कै , बा नेहिया, जइसे केहू नैन कै ज्योति हे राइल।
देरी वदे रिसीयाइल बा, या, चीरहवे बदे कतहू बा लुकाइल । ।
व्इसे त अंतरजामी रहे, सुनिके, ई बियाह मना भरी आइल ।
लागत बा यंही लाजन से, बिटिया मोसे भेंटी करें नही आइल । ।
बाबा बोलावात तेरी शकुंतला, माफ़ी दे, आपन फीस लै ले ।
छोड़ी के न अब जाबे कहीं , बचली जिनगी कै बरिस तै लै ले । ।
मानि जोते अबकी बेरीया, तीरबाचा , मोसे दस- बीस तै लै ले ।
ना सग बाप, तबो पोखवइया, बियाहै कै आय आशीष तै लै ले । ।

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