पनियां पर पाई जे पारत आइलें ।
बाहीं कै जोर बरोर बड़ा ,
चाहे धापत,चाहे उघारत अइलें ॥
पुण्य कै टाटी संवारे जहाँ ,
वहीँ पाप अटारी उजारत अइलें ।
वहि राजा भरत के भारत में ,
घर भर मिलिके महाभारत कइलें ॥
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी
भोजपुरी शकुन्तला मेरी एक ऐसी कृति है जिसके लिए मैंने अपनी पुरी क्षमता के साथ काम किया है। पाठको का स्नेह भी मुझे मिला है जिसका मैं जीवन भर आभारी रहूँगा। मेरा यह इन्टरनेट ब्लॉग उन पाठको के लिए है जो मेरी पुस्तक शकुन्तला का अध्ययन नही कर सके। भोजपुरी में लिखी गई "शकुन्तला "उनको समर्पित है। डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी
मिलते नहीं कभी भी ,
रहते हैं एक सफ़र में /
तुम भी इसी शहर में ,
हम भी इसी शहर में //
आँखों कि क्यारियों में ,
नींदों कि बहारों में /
ख्वाबों के फूल खिलते ,
झरते हैं रात भर में //
आ वक़्त के टुकड़े से ,
हम उम्र को निचोड़ें /
कहते हैं इक समंदर ,
सोया है इस लहर में //
ये जिद थी मुकद्दर की
जिसे मान गये वरना /
तुमसे हज़ार दुनिया ,
कमतर मेरी नजर में //
तुमने मुझे गवांया ,
मैंने तुझे लुटाया /
अमृत तलाशते थे ,
दोनों कभी जहर में //
कल रात मेरे साथ ,
नया हादसा हुआ /
सौगात लेके आयी थी ,
मौत मेरे घर में //डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी
नमस्कार मित्र आप का बहुत बहुत धन्यबाद मई अपने आप को दुर्भाग्य शाली महसूस कर रहा हूँ की इतने दीं से आप की इतनी अमूल्य करती से दूर रहा
जवाब देंहटाएंमार प्राणम् स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
९९७१९६९०८४