गुरुवार, अगस्त 06, 2009

शकुन्तला 14

रोई कहै मृगबाल खड़ा ,तोहके ,अपने से भुलाये न देबै ,
रोकि बतास बहार कहै ,अबकी फुलवा के फुलाये न देबै /
मीजति आंखि कहै बदरी ,बरखा मे केहू के नहाये न देबै
गोड़ लपेटि लता बिलखै अपने ,घर से तुहै जाये न देबै //
आगे पडै पशु -पंखी कै बाल,उठावति चूमि दुलारति जाले,
बेला -चमेली के दै अंकवारि ,लगाय करेजे संवारति जाले /
नेह कै पेड़ नेवारी न सूखै, पियासे न केहू तिखारति जाले,
बाबा ! मंगइबा हमै कहिया ,कहि आगि हिया उद्गारति जाले//
बाबा आशीषें ढुरै अंखिया कहैं ,जा बिटिया मोर मान बढ़ावा ,

राजा कै तू उरहार बना ,बढी,रानी शर्मिष्ठा कै तू पद पावा /
शान बढ़ावा दूनोघर कै ,कनियाँ , दुनिया कै नरेश खेलावा ,
जीवन जीति के तूँ सगरो ,चौथेपन में हमरे घर आवा //









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