गुरुवार, अगस्त 06, 2009

शकुन्तला प्रथम खंड (4) शकुन्तला मिलन

नाहक सोच विचार मैं बाटा तूं , बात बा ई बस नान्ह भरे कै ।
घुमत - घामत ,आवत - जात की ; बाबा येके पवनै उसरे पै
बाप बने तबसे यनकै ,बकी , ई सग खून हयी दुसरे कै ।
पालत - पोखल बाभन है बकी, ई बिटिया हैं केहू ठकुरे कै॥

ओंठसे छुटति बात हहात की ,राजा ख़ुशी मन से बोलत तूती।
जाति कै बानि उहो टूटी गै , भगवान् कै लागत बा अजभूती॥
राही कै रोड़ा हटावत जाल्या , न जानी परै तोहरी करतूती ।
रानी बनी , या कि येके बदे हमहीं के लगावे के परी भभूती॥

बात सही न बतावत बाटू जनात बा देति हऊ तूँ छलावा।
जानि अजान अनारी हमैं, भरमाँय घुमाँय के देलू भुलावा ॥
साफ़ बतावा न तूँ बगदावा, अन्हारे मे न अब बान चालवा।
कइसन ठाकुर कै बिटिया ,बभने घर टूडत लावा ॥
बोली सखी तनी रुखरि हवै; जब चाहत बाटा सुनै तौ सूना ।
गधी सपूत भये कुश वंश में,लागे करै तप दून पे दूना ॥
डोलन लागी जो इन्द्रपुरी तब , देव नरेश मने मन गूना।
लागत बा मोरे आसन पे केहू चोर लगावल चाहत चूना ॥
सूघर छः परी इन्द्रपुरी ,पठए, बस एक सजाय संवारी ।
कै रतिक्रीडा निहाल भये ,ऋषि माटी मिलाई के कीरति भारी ॥
गै जनमाँई के इन्द्रपुरी ,गुरु पाए शकुंतन बीच बेचारी
बाप बने विश्वामित्र क्षत्रिय इन्द्रपरी मेनिका महतारी ॥
सुनतै- गुनतै बनि मूरति,सुरति , ठाढ भये जेस नीद से जागी ।
साँस बढ़ाई के राजा कहै सबकै बस आपन - आपन भागी ॥
'मान न मान बने मेहमान ' भई बड देर घरा अब भागी ।
दूई चारि दिना ; मलिके के बिना रही ,बाबा के बात ई नीक न लागी ॥
दूनऊ ओर से जुझत है , नयना - नयना पे करै जदुवायी ।
देखि संखी हँसि बाँकी हँसी ,चुटकी लै शकुन्तला छेडि हँसाई॥
बाबा हैं अंतरजामी बड़ा ,चिढीहैं न भला मिलि करिहैं बड़ाई।
जाये न देइहैं अकेले तुहैं, संग देइहैं कराय ,वियाह विदायी ॥
मारि बा फूल औ पाथर कै , कहै साधू- सुता तूँ सहै नहीं देबू
चोखि बा तोरि जबान बड़ी ,तन , कटी के खून बहै नहिं देबू ।
आवै दया बाबा के ; मानब ना ,कहबै; केतनो तूँ कहै नहि देबू ।
जाये जो चाहीं त जाये न देबू ;जो चाही रहै तो रहै नहिं देबू ॥
बाति बतास से होलू नाराज तूँ ; फूलल फूल से भइलू बेकाबू ।
धाई शकुन्तला के धई ल्यावै ;कहै ;इन्हैं का कहलीं हम बाबू ॥
जात हईं हमने अपुनै सुधि एक धराइब ना त भुलाबू ।
सेवा बदे कहि गईलें हैं बाबा , त छोड़ कहाँ मेहमान के जाबू॥
प्रीति नई गदराईल बा भल पाय बहार बढे मनमानी ।
भै गन्धर्व वियाह इहाँ मठ कै धेरिया भै राज कै रानी ॥
ई सुघरी बा परी कै लली दुसरे तन साजति आय जवानी ॥
ठुठूर राजा न लागैं लड़ावत खून से खून अ पानी से पानी ॥
बीतल चारि दिना रस बोरल ,जैसे लगे मधु घोरल दोना ।
रात सजल दिनवां सुघराइल चान अ सूरज लागे खेलौना ।।
राजा चिढावत रानी के हैं कोरवां मैं थमावत की मृगछौना ।
बीनि लता से बनी खटिया फुलवै ओढना फुलवै कै बिछौना ॥
राजा करेज लगाय कहैं 'एक बात कही ,मन राज बड़ा बा ।
लागत ना कतहूँ जियरा ,चित मोर होंसईल आज बड़ा बा ॥
ना जानी कईसे कै हॉट उहाँ मोर राज कै काज ,अकाज बड़ा बा ।
जाये दे आज तूँ राज बदे, हर साज़ से माथे कै ताज बड़ा बा ॥
ओंठ कै बानि परै जब कान , त डोलत जैसे करेजे में आरी ।
लाल कली पियराय चली हिरनी अँखिया बनली पनिहारी ॥
का कहला , अब जात हया तोहरे बिन काव बनाई -बिगारी।
सरबस लूट के जाल्या तनी सुधि जल्दी लिहा मोरि लाज कुवांरी ॥
कइसन लाज अकेले तुहार मोरे कुलखूँट कै लाज तूं बाटू।
पौरव वंश कै अंश कहै अब लिलारे कै ताज तूं बाटू॥
फूल अ पाती से ना सजबू अब राज घराना कै साज़ तू बाटू ।
लाख - करोर गुना बढीहैं , जवने मरजाद पे आज तू बाटू ॥
सोना औ चानी कै कंगन चूड़ी ;त हीरा अ मोती कै हार गढइबै।
मान तोरे परगे -परगे सरगे से कुबेर खजाना बिछाइबै ॥
ले मुनरी मोर नांव लिखल एक आखर पे एक रोज़ बितइबै ।
पांच संझौती जरी कइसो छ्ठ्यें दिन सूरज के संग अइबै ॥
ना चाही हीरा औ मोती हमैं दरकार न बा चनियाँ-सोनवां कै ।
ना चाही तिनहु लोक कै राज़ न चाहत सूरज औ चनवां कै ॥
बात इहै सब लोग कहैं दुबिधा ब इहै हमरो मनवां कै ।
पांच दिन कहि जात हया ,जिनगी त लगै चरिये दिनवां कै ॥

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