गुरुवार, अगस्त 06, 2009

शकुन्तला द्वितीय खंड 6

रोई कहै मृगबाल खड़ा , तोहके अपने से भुलाये न देबै।
रोकि बतास बहार कहै अबकी , फुलवा के फुलाये न देबै ॥
मींजति आँखी कहै बदरी ,बरखा में केहू के नहाये न देबै ।
गोड़ लपेटि लता बिलखे, अपने घर से तूहैं जाये न देबै॥

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