गुरुवार, अगस्त 06, 2009

शकुन्तला 15

बाबा करेज ढुरै बदरा ,अंखिया ,बरसै बनि मास सेवती ,
लोटि-लपेटि के भेंटति है ,जैसे भिनसारे कै दीया औ बाती /
सोचै कि होत विदा बिटिया ,सुसुकै वन पशु , फूल औ पाती,
यइसन हाल हमार जो बा ,भला फाटै न कइसे गिरहस्ते कै छाती //
जा जल पूजन- वन्दन कै ,वनदेवी के फूल चढ़ावा ये बेटी ,
छोड़ति बाटू सिवान हमार,सिवाने के माथ नवावा ये बेटी /
छोडि के मोहि -मया यहिकै ,अगिले घर लगि लगावा ये बेटी ,
मान बढौलू तू नैहर कै ,ससुरारी कै शान बढ़ावा ये बेटी //
जा जल वन्दन करा शकुंतला ,या अपनी तकदीर के भूजा ,
खांचल लाल लिलार पे जौन बा ,होई उहै, नहि होवै के दूजा //
मानल बा पपिहा बनि रोवै के,कइसे भला बनी कोइल कूजा,
भागि जरै जवने में पुजारी कै, ना सुनली यस पानी कै पूजा //
पानी के पूजन बंदन में ,मुनरी दुष्यंत कै खोवती जाले ,
राजा मिलें ,मिली राजघराना मनें-मन माला पिरोवती जाले //
जीवन कै सुघरा सपना ,नयना ,अयना में संजोवती जाले ,
रोवती जाले निहारी के नइहर ,सासुर कै पथ धोवती जाले //
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