गुरुवार, अगस्त 06, 2009

शकुन्तला दुतीय खंड (४)

येइशे कटे लगने दिनवा, नहीं अइनै दुष्यंत , न भेजे सनेशा ।
जोहती बा रहिया, रतिया मन, अइहै कै लागै अनेशा । ।
छोरति बा गठिया जिनगी कै, उधेरति बिनटी रेशा पे रेशा ।

लागति इन्द्रपरी तरे जे उ, बनउले बा आज फकीरे के भेषा । ।
आवत जात की देखत बाबा, कहें तकदीर कै लेख के मेटी ।
भें गोरकी देहिया कजरी , खखरायेल, बा गली माँशु कै पेटी । ।
देखत की भभरे अखिया, मन चाहत धे अकवारी में भेटी ।
राखल ना भल ढेर दिना अपने , अंगना में बिहायल बेटी । ।
रोज विचार करे मिलिके, सब बाबा औ आश्रम कै रहवइया ।
धार, उधार बही कैइशे , नहीं, नाय चली बिन एक खेवइया । ।
होई बिदाई शकुन्तला कै , अनुमाने सबै मिली चान तरेइया ।
छुटी सखी परिवार सबै गैईया, मइया , मिरगा, गुरु भइया । ।

भोर भये खुलली अखिया, सखिया, मिली जाय जगावती बाटी । ।
नाव शकुन्तला कै लइकै, भरी हांक पे हांक लगावति बाटी । ।
नेह कै दूरत बा झरना गितिया, शुभ कै मिली गावती बाटी। ।
मिजी सबै नहवावती बाटी औ, पोरई पोर सजावटी बाटी । ।
गोर अंगार त बाटी तबों , हरदी उपटावन मीजल जाली ।
साजी सिंगर करें सोरहो, ओकरे उपरा खुद रिझल जाली । ।
रेहन होते सनेह कै खेत यही , अंचिया तर सीझल जाली ।
हाले करेज बिछोह कै गीत, धूरे अंखिया सब भिजल जाली ।
बानहत बार , गुथे चोटिया केहू , काने में डारत कुंडल बाली ।
फूलल फूल बनै गजरा, जुरवा में , जरे मिली हाली अ हाली । ।
आंचर ओढ़ी ओढाई के देखत, डारत सुन्दरताई कै जाली ।
कर्धीन बा करियारी में बानहिल झुलती बा भल घुघुर ताली । ।

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