गुरुवार, अगस्त 06, 2009

शकुन्तला दुतिय खंड (५)

चान तरे टेढ़वा मथवा बुनकी, जेस लागती है तरई बा ।
भौह कमान तनी मछरी , अखिया, में धसें कजरा नरई बा । ।
ओठ ललाई लगे जेस उबली, बा धनुही बरखा कै नई बा ।
ना गिरिजाय कही बिजुरी , अबही बढ़ नांह लगे जरई बा । ।

हार बनै कचनार कै फूल, लोंढे छतिया पे करेज में झाक़े ।
पोरे पोरे कसी मुनरी नग, गीत लड़े चुरिया कंगना कै । ।
हाथ गदोरी रची मेंहदी , भल गोंढ ललाई लगे रंगना कै ।
हेरति खोजति जाति जवानी , जनो अंगना अपने सजना कै । ।

आगे चले गुरु औ गुरुबेटी, कि चीनह धरे पिछवै सब डोले ।
होत हज़ार करेजे कै टुक, ढ़ूरै अखिंया मुह से नहीं
भटति देति सबै अक्वारी तरे, सुसुके मुहवा नहीं खाले ।

तोर बिदाई लगे सबके जइसे जियरा तरवारी से छोले ..

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