शनिवार, जुलाई 02, 2011
केहू हंसै,तर बान कसै,मोरे राजा से आज भले बा भेंटाइल //
देखै शकुन्तला आँख उठाई के ,चारिउ ओर जमात खड़ी बा ,
बईठल बा उहै आज इहाँ ,जेकरे मथवा घर कै पगड़ी बा /
राई गिरै न गिरी भुंइयां,भल लागल भीड़ बड़ी तगड़ी बा ,
जीतल बाजी निहारै सबै ,जनु हारै बदे ऊ एकेलै खड़ी बा //
भाई निहारति,माई नहारति,देखि सबै अंसुवा मिलि गारत ,
राजा अ परजा निहारै सबै ,केहू बात चढ़ावत केहू उतारत /
सूरज-चान लखै बदरा,केहू मेटत बा केहू बा कुछ पारत ,
खोजाति बा सुघरी -सुघरी अंगुरी त मिलै,मुनरी बा नदारत //
सांप के सूंघे शरीर भै सुन्न,न काटे पे खून बहै नसिया में ,
आंखि ढपे तरुवा चटकै,चिनगी बरसै पुतरी अंखिया में /
धई मथवा,हथवा बईठै,कहूँ ,ना गिरलीं रहिया -बटिया में ,
हे !भगवान् ई का कइला ,मुनरी न मिलै अंगुरी गंठिया में //
शनिवार, दिसंबर 18, 2010
गुरुवार, अगस्त 06, 2009
शकुन्तला और दुष्यंत की प्रेमकथा भोजपुरी भाषा में
शकुन्तला और दुष्यंत की प्रेमकथा भांति - भांति के रंगों से सजी हुई है। खासकर इस प्रेमकथा के विरह वर्णन का तो कोई विकल्प ही नही दिखाई देता है। बस इसी को सहेजा है आपके इस भाई ने शकुन्तला और दुष्यंत की प्रेमकथा भोजपुरी भाषा में ......
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी
कृपया अपने सुझाव मेरे मोबाईल नम्बर ९४५५८८५८६६ या मेरे ईमेल पते itshakuntla@gmail.com पर अवश्य दे । हमें आपके अमूल्य सुझावों का इंतजार रहेगा । बस इसी आशा के साथ
आपका अपना अनुज ......
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी
व्याख्याता ( बी .एड .विभाग )
श्री दुर्गा जी स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय , चण्डेश्वर, आजमगढ़
भोजपुरी शकुन्तला (प्रस्तावना)
पनियां पर पाई जे पारत आइलें ।
बाहीं कै जोर बरोर बड़ा ,
चाहे धापत,चाहे उघारत अइलें ॥
पुण्य कै टाटी संवारे जहाँ ,
वहीँ पाप अटारी उजारत अइलें ।
वहि राजा भरत के भारत में ,
घर भर मिलिके महाभारत कइलें ॥
डॉ ईश्वरचंद्र त्रिपाठी
शकुन्तला प्रथम खंड (१)
बान्हत है छेगरी के तरे , दंतवा गिनि डारत ओठ उघारी ॥
तेज प्रताप कै खानि रहे , बचकानी क बा बणी कीरति भारी ।
तेकर बाप बने है दुष्यंत , शकुन्तला रानी बनी है महतारी ॥
आज तनी इतिहास उलाटी , औ हेरत खोजत कीं अनुमानी ।
न सोझवे पतियाती बा बाति, औ ना उतरे गटई तर पानी ॥
एक ते सोने के टाठी में खात है , दूसर तौ वन-पात में खानी ।
इ राजा के बेटा , ऊ साधू के पाललि, कैसे बनें भला दूनों परानी ॥
चंदर वंश कै शोभा बने , औ राजा ययाति के मान कै थाती ।
पौरव वंश के पुण्य प्रकाश , तरे झलकै बनि दीप कै बाती ॥
राजा दुष्यंत कै दुर्ग धुजा , लहरै लखि फूलत इन्द्र कै छाती ।
चाहें दुवारे असाढ़ झरे , चाहे आँगन में बरसावें सेवाती ॥
राजा सबै लड़ी हारी गए , नहि रोकि सकै केहू एक झकोरा ।
बइठे सिंहासन पे दुनिया के औ, तीनहू लोक पिटाये ढिढोरा ॥
बीते दिना यईसे - वईसे , इतिहास लिखै लई कागद कोरा ।
खेलै शिकार चली वन में , सपना उमड़ी, पुतरी परै डोरा ॥
सेन सजी हथिनापुर की , सब साथ चलै अगले बगले में ॥
जोडि के गोड़ भगै हिरना , नहि बान लगै अगले - पिछले में ।
धावत धूपत धूसर भै मुंह , भेद न बा जगले सुतले में ॥
शकुन्तला प्रथम खंड (२) शकुन्तला मिलन
राजा निहारति है बनि मूरति , चाहत है केतना लेई देखीं ।
शकुन्तला प्रथम खंड (३) शकुन्तला मिलन
कबहूँ देहियाँ कै कसल बन्हना , हमसे कहि ढील करावत बाटू ॥
अब लागे जवानी कै पानी तुह्नै , यतनै बस जानि न पावत बाटू ।
हमे लागत बा सपना में कहूँ , घर चान के गाँव बसावत बाटू ॥
ई कजरी -कजरी अंखिया ,गोरके मुंहवा पे कहाँ फ़िर पईहैं ।
तोरे बारे के छाहें बड़े मन से ,गर्मी ,बरसात ,जुडात बितईहै ॥
कान्हे कै भार , औ देहीं कै अईठन दूनो मिटइहै न तौ कहाँ जईहैं।
बोलवाई ले राजा दुष्यंत के तैं, तोर भवरन से झगरा तोरवेहै ॥
शकुन्तला प्रथम खंड (4) शकुन्तला मिलन
घुमत - घामत ,आवत - जात की ; बाबा येके पवनै उसरे पै
बाप बने तबसे यनकै ,बकी , ई सग खून हयी दुसरे कै ।
पालत - पोखल बाभन है बकी, ई बिटिया हैं केहू ठकुरे कै॥
ओंठसे छुटति बात हहात की ,राजा ख़ुशी मन से बोलत तूती।
जाति कै बानि उहो टूटी गै , भगवान् कै लागत बा अजभूती॥
राही कै रोड़ा हटावत जाल्या , न जानी परै तोहरी करतूती ।
रानी बनी , या कि येके बदे हमहीं के लगावे के परी भभूती॥
बात सही न बतावत बाटू जनात बा देति हऊ तूँ छलावा।
जानि अजान अनारी हमैं, भरमाँय घुमाँय के देलू भुलावा ॥
साफ़ बतावा न तूँ बगदावा, अन्हारे मे न अब बान चालवा।
कइसन ठाकुर कै बिटिया ,बभने घर टूडत लावा ॥
शकुन्तला द्वितीय खंड (1)
जाय चिढावती है संखिया ,जबरी नहवावती पिटती तारी ।
शकुन्तला द्वितीय खंड (2)
शकुन्तला दूतीय खंड (3)
छोड़ि के अन्न औ पानी सबै , जियतै मुरदा यस लागति बाटू
ढूरित बा अंसिया अखिया , मोतिया अचरा धैई तागति बाटू ।
फुटली भाग तुहार शकुंतला, सुतति बाटू की जागती बाटू । ।
रोवती बा चकई कतहु , चकवा नदिया पे उदास पियासा ।
कइसे रही अपने अगवें पलटै, केहू कै तकदीर कै पासा । ।
कांपती बा रहिया - बटिया, पतिया झरै पेड़ से दुरत लासा ।
केहू के भागी पे आग धरै , जनु धावत आवत है दुर्वासा । ।
सूरज बंद करे अखिया, कहू , धैएके करजे बतास पडावा ।
चान तरीया लुकाई फिरे जनु, होवन चाहे अनर्थ बदबा । ।
बान्हल जात बा पंख तुहारत, सोनन चानिन कै पिंजरा बा ।
याद में भुलली बा बिटिया, रिसिहा - योगिया अगवारे खड़ा बा । ।
शकुन्तला दुतिय खंड (५)
भौह कमान तनी मछरी , अखिया, में धसें कजरा नरई बा । ।
ओठ ललाई लगे जेस उबली, बा धनुही बरखा कै नई बा ।
ना गिरिजाय कही बिजुरी , अबही बढ़ नांह लगे जरई बा । ।
हार बनै कचनार कै फूल, लोंढे छतिया पे करेज में झाक़े ।
पोरे पोरे कसी मुनरी नग, गीत लड़े चुरिया कंगना कै । ।
हाथ गदोरी रची मेंहदी , भल गोंढ ललाई लगे रंगना कै ।
हेरति खोजति जाति जवानी , जनो अंगना अपने सजना कै । ।
आगे चले गुरु औ गुरुबेटी, कि चीनह धरे पिछवै सब डोले ।
होत हज़ार करेजे कै टुक, ढ़ूरै अखिंया मुह से नहीं
भटति देति सबै अक्वारी तरे, सुसुके मुहवा नहीं खाले ।
तोर बिदाई लगे सबके जइसे जियरा तरवारी से छोले ..
शकुन्तला दुतीय खंड (४)
जोहती बा रहिया, रतिया मन, अइहै कै लागै अनेशा । ।
छोरति बा गठिया जिनगी कै, उधेरति बिनटी रेशा पे रेशा ।
लागति इन्द्रपरी तरे जे उ, बनउले बा आज फकीरे के भेषा । ।
आवत जात की देखत बाबा, कहें तकदीर कै लेख के मेटी ।
भें गोरकी देहिया कजरी , खखरायेल, बा गली माँशु कै पेटी । ।
देखत की भभरे अखिया, मन चाहत धे अकवारी में भेटी ।
राखल ना भल ढेर दिना अपने , अंगना में बिहायल बेटी । ।
रोज विचार करे मिलिके, सब बाबा औ आश्रम कै रहवइया ।
धार, उधार बही कैइशे , नहीं, नाय चली बिन एक खेवइया । ।
होई बिदाई शकुन्तला कै , अनुमाने सबै मिली चान तरेइया ।
छुटी सखी परिवार सबै गैईया, मइया , मिरगा, गुरु भइया । ।
भोर भये खुलली अखिया, सखिया, मिली जाय जगावती बाटी । ।
नाव शकुन्तला कै लइकै, भरी हांक पे हांक लगावति बाटी । ।
नेह कै दूरत बा झरना गितिया, शुभ कै मिली गावती बाटी। ।
मिजी सबै नहवावती बाटी औ, पोरई पोर सजावटी बाटी । ।
गोर अंगार त बाटी तबों , हरदी उपटावन मीजल जाली ।
साजी सिंगर करें सोरहो, ओकरे उपरा खुद रिझल जाली । ।
रेहन होते सनेह कै खेत यही , अंचिया तर सीझल जाली ।
हाले करेज बिछोह कै गीत, धूरे अंखिया सब भिजल जाली ।
बानहत बार , गुथे चोटिया केहू , काने में डारत कुंडल बाली ।
फूलल फूल बनै गजरा, जुरवा में , जरे मिली हाली अ हाली । ।
आंचर ओढ़ी ओढाई के देखत, डारत सुन्दरताई कै जाली ।
कर्धीन बा करियारी में बानहिल झुलती बा भल घुघुर ताली । ।
शकुन्तला दुतीय खंड (५)
शकुन्तला द्वितीय खंड 6
रोकि बतास बहार कहै अबकी , फुलवा के फुलाये न देबै ॥
मींजति आँखी कहै बदरी ,बरखा में केहू के नहाये न देबै ।
गोड़ लपेटि लता बिलखे, अपने घर से तूहैं जाये न देबै॥
शकुन्तला 12
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शकुन्तला 14
रोकि बतास बहार कहै ,अबकी फुलवा के फुलाये न देबै /
मीजति आंखि कहै बदरी ,बरखा मे केहू के नहाये न देबै
गोड़ लपेटि लता बिलखै अपने ,घर से तुहै जाये न देबै //
आगे पडै पशु -पंखी कै बाल,उठावति चूमि दुलारति जाले,
बेला -चमेली के दै अंकवारि ,लगाय करेजे संवारति जाले /
नेह कै पेड़ नेवारी न सूखै, पियासे न केहू तिखारति जाले,
बाबा ! मंगइबा हमै कहिया ,कहि आगि हिया उद्गारति जाले//
बाबा आशीषें ढुरै अंखिया कहैं ,जा बिटिया मोर मान बढ़ावा ,
राजा कै तू उरहार बना ,बढी,रानी शर्मिष्ठा कै तू पद पावा /
शान बढ़ावा दूनोघर कै ,कनियाँ , दुनिया कै नरेश खेलावा ,
जीवन जीति के तूँ सगरो ,चौथेपन में हमरे घर आवा //
शकुन्तला 15
लोटि-लपेटि के भेंटति है ,जैसे भिनसारे कै दीया औ बाती /
सोचै कि होत विदा बिटिया ,सुसुकै वन पशु , फूल औ पाती,
यइसन हाल हमार जो बा ,भला फाटै न कइसे गिरहस्ते कै छाती //
जा जल पूजन- वन्दन कै ,वनदेवी के फूल चढ़ावा ये बेटी ,
छोड़ति बाटू सिवान हमार,सिवाने के माथ नवावा ये बेटी /
छोडि के मोहि -मया यहिकै ,अगिले घर लगि लगावा ये बेटी ,
मान बढौलू तू नैहर कै ,ससुरारी कै शान बढ़ावा ये बेटी //
जा जल वन्दन करा शकुंतला ,या अपनी तकदीर के भूजा ,
खांचल लाल लिलार पे जौन बा ,होई उहै, नहि होवै के दूजा //
मानल बा पपिहा बनि रोवै के,कइसे भला बनी कोइल कूजा,
भागि जरै जवने में पुजारी कै, ना सुनली यस पानी कै पूजा //
पानी के पूजन बंदन में ,मुनरी दुष्यंत कै खोवती जाले ,
राजा मिलें ,मिली राजघराना मनें-मन माला पिरोवती जाले //
जीवन कै सुघरा सपना ,नयना ,अयना में संजोवती जाले ,
रोवती जाले निहारी के नइहर ,सासुर कै पथ धोवती जाले //
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रविवार, अगस्त 02, 2009
शकुंतला तृतीय खंड
साँझ -विहान कै रंग गुलाबी ,के रोज लगावै, के रोज मिटावै /
बागि लगावै ,के फूल फुलावे, नदी के कछारे बतास डोलावे,
यैसन राज कै राजा बा के ,जे नियाव पे राज चलावै//
ऊंचि अदालत लागलि बा ,ऊपरा बइठल जग -जीतल राजा ,
साजलि बा खोरिया -खोरिया ,भल बाजत बा मन मोहक बाजा//
बाभन बइठल हैं बगले ,अगवां ,बैठे सब सैन समाजा,
फुललि नाही समाति शकुंतला ,भुललि याद भइल फिर ताजा//
जइसन काने सुनात रहल ,वहु से वरियार दुवार किला बा ,
पूरब -पश्चिम -उत्तर -दक्खिन,चारो दिशा मे सिवान मिला बा /
जेके निहारै तैं रात-दिना,नयना तोरे आगे ऊ रूप खिला बा
फरकत दाहिन आँख तबै,अनहोनी बिचार करेज हिला बा //
सोची -संकोची शकुंतला ठाढ़ी खड़ा अगले -बगले गुरुभाई ,
धीरज देत सनेह निचोरत ,आँचर फेरती गौतमी माई /
पाई सनेश नरेश चलें ,इहै जनि दुवारे खड़े द्विज आयी ,
माथ नवाय कहै केस नाथ ,पधारा खुदे न लिहा बोलवाई //
पीयर -पीयर बा धोतिया ,कन्न्ह्वा पे जनेऊ कै बा पियराई ,
जोग कै पोखाल देह निरोग ,आ लाल लिलारे त्रिपुंड लगाई /
बोली मे घोरल बा मिसिरी ,भल विद्या -विवेक कै बा अंगड़ाई ,
हैं असमंजस में नृप देखि के ,साथ मे ई कईसन सुघराई //
सूरज -चान के बीच खरी ,जेस सांझे -बिहाने के है सुघराई /
सोतो आकाश मे ,ई ब्रम्हांड मे,कवने नक्षत्र के बाय ललाई ,
देखि न पउली कबो सपना मे ,औ सोच न पउली ई सुन्दरताई ,
साज कै शान औ विप्र कै मान ,निवाही कहै मानभाव दबाई //
बाधा परे गुरु पूजन पाठ मे,या केहू नीच दिही दुःख भारी ,
या बदरा बरसे वन मे नाही ,सूखती बा फूलवारी नेवारी /
कउन कलेश परल उपरा ,अइला अपुने खुद दास दुआरी ,
नैन निचोरि ,दसो नह जोरि ,धरै द्विज पाव में ताज उतारी //
बोले शकुंतला कै गुरुभाई कि ,हेतु बतावै तो आयल बाटी ,
जानत बाटा कुली बतिया , यही कारन से चुपियायल बाटी /
पूँछत बाटा फेरू हमहीं से ,यही बनवा से तो घायल बाटी ,
सागर मे उतिरायल बाटी कि , जाय जमीनी समायल बाटी //
बाटा ,तबो अनचीन्ह के नाटक से हमके न भुलावा ,
तूँ मृगया मे गुरू -चीन्हततनया से ,मठे में सनेह वियाह रचावा /
पांच दिना कहिके अइला ,फिर गइला न काहें हमे तूँ बतावा ,
अइने गुरू सब जानी खुशी मन ,किएने विदा सब साज सजावा //
ऊहे श कुंतला आइल है ,शरमाइल ठाढ़ बनी अनजानी ,
जे रहनी द्विज कै धेरिया ,उहै आज हई यही राज कै रानी //
पालती बाटी करेजे में ई ,तुहरे कुल वंश कै एक निशानी ,
हे जगनायक ! तू अपनावा ,बड़ी बहिनी मोर बाय नदानी //
डोले आकाश मही धंसी गै ,सगरो ब्रह्माण्ड लगावत फेरा ,
सूरज -चान दूनो छिपी गै ,जेस लागत बा अन्हियारे कै डेरा /
माथ धरै, नृप कान ढ़पे कहै ,यईसन बानी फिरू न उकेरा ,
बाढ़ल बा मरजाद मोरे कुल कै ,महराज !तू पानी न फेरा //
ध्यान न आवत बा कहिया ,हम करतै शिकार मठे चली गईली,
ना घर कै मलिकार तबो ,ओनकी बिटिया से बियाह रचउली/
याद न बा कहिया अपने ,हाथवा अपने घर आगि लगउली,
पाप न बोझाकेहू कै हमे,भगवान! करा तनी बीच -बिचउली //
पाप कुबानी परे जब कान,शकुन्तला,लागत बान कि नाई,
लागली बा अगिया पहिले से,ई देखि के राजा कै नीच -निचाई /
आगे न चीन्हत आज हमें ऊ जे पूजत मोर कबो परछाई ,
दखी न आज मुहां यनकै,अपुनै कहूँ जाय नदी धंसी जाई //
बोली न बा ई त गोली है राजन !जइसे करेजे मे दागत बाटा ,
आज दुवारी पे तू अपने ,अपने कुल -धर्म से भागत बाटा /
पीयत क्रोध कहै द्विज राजन !सूतल बाटा कि जागत बाटा ,
सांवर करतब,झूठ कै पानी,चढ़ावत नीक न लागत बाटा //
जो बहिनी तै धियान धराव ,बजाई के प्रीती कै छूटल तारी ,
शूल धंसल पतझारे कै रोज ,भले सिंचतै रहलू फुलवारी /
तू पुजलू जेके भागीरथी कही,ऊ बनी गईनै नहाने कै नारी ,
राजा न बा कुल फूंकन बा,कै नारी बियाहल बा व्यभिचारी //
बोली शकुन्तला आगे तिराई के ,यइसन नाची नचावा न स्वामी ,
बा जग जाहिर नांव तुहार त ,काजर पोती मिटावा न स्वामी //
राज घराना कै इज्जती इ ,कोलिया -कोलिया में छिटावा न स्वामी ,
पानी नदी कै समुद्र पसारी ,पहाढ़ पे नाय चलावा न स्वामी //
का चुकीगै यतनै दिन में तोहरे अनुराग कै बोझली थाती ?
या जरीगै उवतै वीरवा ,तोरी ,प्रीती में न अखुवाइल पाती ?
लोप करा न अन्हेर करा ,न -बुतावा इमाने कै दीया औ बाटी ,
राजा हया तो नियाव करा ,कुलटा हम बाटी ,कि तू कुल घाटी ?
फूल औ पाती के मंडप में ,बनदेवी के आगे वियाह रचउला ,
लाजी कै बाती का आगे कहीं ,फिर बातिन -बाती में बाती बनउला //
जो भरी आयल मोसे मना,हिगरै वदे राज सनेश सुनवला ,
प्रीति के गायें बजार लगाई के ,राजा भले रोजगार चलउला //
राज समाज बने पथरा ,असमंजस में पुतरी परे डोरा ,
रानी बनउले बा जे घुंघुटा ,उडीगै बिन आन्ही झकोरा //
आगे खड़ा नृप मूरति हवे ,अंखिया चढ़लीं बनी खून कटोरा //
ई तिरिया कै चरित्तर है ,चुटकी लैमारत बाते कै रोरा //
ऊहै मजाक उड़ावत बा ,जेहसे मरजाद कै प्रश्न जूडा बा ,
का दुनियां मरदे के बादे ,मेहरारू कै ना कवनो टुकड़ा बा //
यइसे बिचार उठल उदगार ,बड़ा बरियार फनल झगड़ा बा ,
पूरब से चली घटा ,पछुवां ,भल बादर ले उमडा बा //
मैं हिरनी तरे ढूकल जालों ,तू व्यंग कै बान चलावत जाल्या !
आगि लगाई मोरी देहियाँ ,अपनै दरी नून लगावत जाल्या //
देइ मुनरी अइला हमके ,इहो झूठें बा ,जवन छिपावत जाल्या,
इज्जति का मरदे मेहरारू कै ,जानि के बात बढ़ावत जाल्या //
जोर लगावत माथे पे राजा,न ऊबति बा एक होंशी कै रेखी ,
आज दिना मोर कइसन बा ,भगवान तुहार बा कइसन लेखी //
भूललिबाटू ,भुलाइल बाटू ,लगावति बाटू फरेब कै शेखी ,
एकउ पंथ से ना जितलू,एक पंथल और अंगूठी त देखी//
पंथल ना कवनों छल ना ,छलिया नहिं आयल ,ना कुछ लूटी,
जादू औ टोना न जानी केहू ,टोंगवा गठियउले जड़ी नहीं बूटी //
ई जिनगी कै सवाल बड़ा ,मोरी इज्जति कै परिमान अंगूठी ,
दूनऊ आंखि चली बहतै ,जइसै गंगवा जमुना चली छुटी//
आपस में बतियावै सबै, कहो ,ई मेहरारू बा कइसनआइल ,
ना दुबियो कै कहीं मुनरी भला ,कावदेखाई ,ई बा पगलाइल/
[शीर्ष पर है ]
यहि ओर लखै,वहि ओर लखै,हर ओरी निगाह उठावै-गिरावै,
बीच बजार खड़ी पगली , अपुनै -अपनै मरजाद लुटावै/
राज -समाज सबै उठि गै ,तिरिया कै चरित्र कहै गोहरावै,
भै बुत ठाढ़ी,जमीन मे गाड़ी,पछाड़ी-पछाड़ी गिरै फिर धावै//
ध्यान करै -अनुमान करै,मुनरी कै निशान कयास न आवै ,
आज मिला अभिमान के हाथे,बड़ा अपमान ,इहै फिर आवै /
कांपति है दरबार के बाहर, हाथ हिलावै न,गोड़ डोलाव
टूटलि बा सपना कै इमारति,चूर बटोरि के ढेर लगावै//
जे चलनी बनै दुईज कै चान,ऊ धरती पे आज उतारलि गईनी,
काल्हि सँवांरलि गइनी सनेह से ,आज उजारिबिगरलि गईनी /
ई तकदीर लाख अनमोल जे, ऊ कगदे तरे फारलि गईनी,
रानी बनै बदे अईली जहाँ ,वहि राज से आज निकरलि गईनी //
सौ -सौ सनेहन कै सपना, अपनी अंखिया से लुटाय चली है ,
गईल दिना कै बिगरलि इज्जति ,बान्हि करेजे मे हाय चली है /
साँच हेराइल झूँठ के भीरि मे, पीसि के माहुर खाय चली है ,
भाई औ माई के पीछे दुखी ,घवही हिरनी अकुलाय चली है //
आवति बा कपिला के तरे ,मोर राजघराना से डाहिल बेटी ,
गौतमी माई कहै समझाई के ,ना मिलतै मन चाहलबेटी //
वेद औ शास्त्र कहैं निक बा,पति के परछाईं में रहल बेटी ,
सासुर में चाहे जइसे रहै,नाहीं नईहर सोहै वियाहल बेटी //
केहू साथ हमै लई जात न बा ,हम न जनली केहि बाट के भईली,
इज्जति,मोहि -मया सगरो,तोहरे ओनके बीचे बांटी के ईली/
यईसन नाय चलौली शकुन्तला धार के भईली न पाट के भईली,
धोबी के कुक्कुर जईसन हम घर कै भईली नहिं घाट कै भईली //
मोर करेज त जरल जात बा,तोर करेज त शीतल होई ,
ना सुनली कबों यईसन हलि,कबों अगवां नहिं ई छल होई /
ऊहै दबावल जात रही इहाँ जे कवनो तरे नीहल होई ,
राजा हया तूँ तबो पईबा फल राम के हाथे मे जो बल होई //
तूँ जवने कुल -खूंट के बाटा उहाँ हर साँझ उदासी बा छउले,
उलटली राज नियाव के बानी बिना अपराध के फाँसी चढ़उले /
राजा ययाति तोरे पुरखा,अपने ,करनी उपहास करउले,
रानी बनी देवयानी जहां ,वहीं रानी शर्मिष्ठा के दासी बनउले//
मोरे बदे जनु बा ओठघावलि चारो दिशा कवने पड़े जाई,
बाँटे आकाश न फाटे जमीन,समुंदर सूखल कहाँ समाई/
आपन केहू देखात न बा,जेकरे अगवां, दुःख आपन गाई,
कईसे नियाव के आस करी,जहाँ राजा खुदै यतना अनियाई //
सूरज -चान तनी अउता सुनि लेता गोहर मोरी दुखिया कै ,
आज बयार तुहीं रुकि के पोंछतू अंसिया,हमरी अंखिया कै /
माई न बा सग भाई बा,केहू न गहंकी हमरी मखिया कै ,
छोट बदे त अदालत लागति ,बात बा ई बड़के मुखिया कै
रात-दिना पुजली तोंहके का, यही दिन खातिर जवन देखऊला,
फूल -कली कहि के चुनला,फिर कांकर-पाथर कईके बहऊला/
आगि लगऊला मोरी जिनगी,अपने कुल-खूंट में दागि लगऊला,
हांकिन-डाँकिन कै हमके ,मेडिया, खोरिया-खोरिया भरमऊला //
ई बदला लेहला हमसे, कवने जनमे कै न जानत बाटी,
खोटि भइल तकदीर कहाँ,इहै बईठी इहां अनुमानत बाटी /
भै फटही लुगरी जिनगी ; टोंगवा,धई सीयत- तनत बाटी,
फाटल जाल बहाय नदी, डिडवा नरई तर छानत बाटी //
यईसन जादू तुहार चलल, हम आम कहै लगली के,
कै चललीं असधार तुहार ,न थाह लगउली है गाँव -गली के /
पाथर मारि गै बुद्धि मोरे ,समझऊलै न केहू हमै पगली के,
चन्दन छांह उजारि के तूं,बईठउला है,छाँहें हमैं तितिली के //
जात न बा केहू मोरे लगे से,केहू हमरे ढिग आवत नाहीं ,
लात तरे लातियावल बाटी,केहू धई बांह उठावत नाहीं /
`खेत सँवारे सबै बनलै ' केहू सूखलि थाहि ओनावत नाहीं,
भीजत-तपत जात केहू टुटही, छानियां में बोलवत नाही//
के सग माई है,के सग बाप है,के जनमउले इहो नहि जानी ,
बाबा सनेह से भईली सयान,नेवारी कै लईया तलईया कै पानी /
काने सुनी मनिका महतारी बा ,बाप हैं गाधि लला मुनि ज्ञानी,
तेकर बेटी ढुरै मेडिया-मेडिया,ठिकरा भरि पीयत पानी //
केहू सनेश तनी भेजता,मोरी माई के इन्द्रपुरी से बोलउता ,
मोरी विपत्ति कै ध्यान धराई के,जाई के बाप कै ध्यान तोरोउता/
बेटी तुहार बुरे परिगै ,यही पापी के आय तनी समझउता ,
सोझे न मानी ई मस्ती में बा,यही हस्तिनापुरी में आगि लगउता//
बाबा कण्व के बोलावती बा,ओनकी नेहिया कै सांवरल बेटी ,
आग से डाहलि जाति इहाँ ,तोर पाललि-दुलारलि बेटी/
आय के देखा तनी अपनै,हक़ हारलि देश निकारलि बेटी ,
आज जो अईबा त जीयत पईबा,बिहान से पईबा तू मारलि बेटी //
मोर ढुरै अन्हरी अंखिया,जनु रोवत हैं मठ कै रहवईया,
फूल -कली पगली तितिली ,अंवरा-भंवरा,चकवा औ चकईया/
दहकत आग करेजन मे, थिर न हिरना डुहँकै कहूँ गईया,
नेह निचोरति गौतमी मईया ,त कान्हें पे कान्ह धरे गुरुभईया //
जेके बदे यतना जने रोवत सोवत हैं मुहवाँ धई धोती ,
टूटै पहाड़ करेजन पे अंखिया,भरि आवै समुद्र कै सोती /
तेकर हारलि आज बाजार में माटी मोलवति है धई मोती,
ई राजपूतन कै करनी ,अपुनै अपने मुंह काजर पोती //
माटी में मोहीं मिलऊला तबो,भगवान करै तोर कीरति बाढ़े,
पास-परोस में देश -विदेश ,आकाश -पताल में तूँ रहा ठाढ़े /
देखै कुभाव-कुनेह से जे,ऊ खुदै अपनी तकदीर के डाढ़े,
तूँ पुतरी से गिरऊला हमैं,तोर राम करै केहू काजर काढ़े //
काल्हि के रूप अ आज कै रंग,बिहान के पानी कै का गति होई,
ई बचकानी के भूल सयानी,ई बूढ़ी जवानी कै का गति होई /
काल्हि कै सुनल आज कै देखल ,आगे कहानी कै का गति होई ,
पालल मोर सनेह कै फूल,ऊ तोरे निशानी कै का गति होई //
माई के बाहीं औ बाप के छाहीं ,खिली फुलवा जब होई दिवाना,
होतै सयान समाज लगी पूछैं बाप कै नांव अ पता ठेकाना //
ना ढीठियारे के आंची लगी कुछ ,काना कै नांव सुने जरी काना ,
नौ -नौ पांती कै आंसू ,ढुरी जब ,मारी जमाना ई साधि के ताना //
आपन सोचि न बाय हमैं ,हमतो भइली जग बीच उघारी ,
प्रीति परोसल गै हमरी,अंगना- अंगना अ दुवारी -दुवारी //
उ अनजाने कै दोष इहै ,तोर रूप धरै बसि कोखि हमारी,
काठ करेज न यइसे करा ,कंकरी के चोरउले न मारा कटारी //
रोवत देखि शकुन्तला के ,खोंतवा-खोंतवा चिरई अकुलानी ,
पाथर फोरि पहाड़ ढुरै ,डुहुंकै नदिया औ समुद्र कै पानी /
देव रोवैं, देवराज रोवै सब ,राज-समाज रोवैं देव रानी ,
आज के दै अंकवारि संवारि के,भूत-भविष्य कै रोवै कहानी //
पात झरै बनपेड़न से,नवधा फुनगी-फुलवा कुम्हिलईने,
जंगल के पशु-पांखी रोवै,भँवरा संग आज बतास हेरइने/
सूरज-चान ढुरै अंसिया,रोवतै रहनै रोवतै रहि गईने,
घेरे शकुन्त शकुन्तला के,खलियै खोंतवा खलियै रहि गइने//
लै सुसुकी डुहँकै बिटिया,महतारी करेज के फारत जाले,
टेर सुनी त अधीर भई,जिनगी मोर आज अकारथ जाले/
भै अजगूत, कहीं अन्हियार,कहीं उजियार उतारत जाले,
लै बिटिया के आकाश चली,बदरा अंचरा तर फारत जाले //
[चतुर्थ खण्ड]
भूख-पियास कै ई दुनिया,न अघाई कबों,रोवतै रही रीती ,
आपनि बानि न देखी कबों,दुसरी अंखिया सपना परतीती /
ई दुनिया कै इहै सच बा,केहू हारी इहाँ न केहू इहाँ जीती ,
लाख-करोर के बाति इहै,पछताई मना जब अवसर बीती //
ई जिनगी त बनी पहिया,कबों खाले पड़ी त पड़ी कबों ऊंचे,
दूर सिवान में जाई भुलाई तो,पूँछि चली,कबहूँ बिन पूंछे /
बोझल जाई अ बोझल आयी,कबों दिन-रात चली व्है छूंछै,
का पवला ठुकराई शकुन्तला के , जाय केहू दुष्यंत से पूंछे //
भै दुर्वाशा कै शाप सकारथ,ई मुनरी कईले बड़ खेला ,
राज के ताज पे जे रहलीं,ई बनउले है ओके सिवाने कै ढेला/
फेरत नाहीं अबेर लगै,शमशान बनावै जहाँ रहै मेला ,
कईसे बखान करी भगवान,जहान तुहार बड़ा अलबेला //
पानी के पूजा में ई मुनरी,अंगुरी से गिरल पनिया मे समाइल,
जाय गिरी मुह मे मछरी के,ज फेरति पाँखि लगा चलि आईल/
आईल बाजार में एक दिना,माछुवारा के हाथे से पेट फराईल,
ई रंगदार बड़े नग कै मुनरी,झलकै अंखिया चुन्हियाईल//
भै चरचा मुनरी-मुनरी,जब राजा के कान पड़ी यह बानी,
चाकर भेजि मगाय लिहे,अपनी उजरी नेहिया के निशानी/
नैन पड़े चित चैन उड़े,मन में हरियाईल घाव पुरानी ,
टूटि पहाड़ गिरै उपरा,हड़होरल जईसे समुद्र कै पानी //
ठाढ़ भई पुतरी त खड़ी जेस,सांसिन पै किरिया झट लागी,
नील अकाश लगे सतरंग,दुनहूं अंखिया सरिता तट लागी /
भूललि याद कयासे परै,परतै-परतै उतरै चट लागी ,
हाय शकुन्तला! हाय शकुन्तला!,हाय शकुन्तला कै रट लागी//